Thursday, December 30, 2010

दिल से निकले कुछ शब्द ......

ऑफिस में बैठा हूँ , फिरसे दिल भारी लगता है , फिर कुछ अरमान जागी है , फिर कुछ कर दिखाने का दिल करता है। और मैं अपने तनहाइयों से फिर साक्छात्कार होता हूँ

जब भी मैं थोडा स्थिर होता हूँ तो दिल करता है की एक सच्चा दिल का इंसान बनू , महात्मा गाँधी और विवेकानंद की पथो पर चलूँ , दिल से भारतवासी होने का गर्व महसूस करना चाहता हूँ , माता-पिता और गुरुओं की सेवा , छोटों को संस्कार और बड़ो को प्यार देना चाहता हूँ। परन्तु विज्ञानं की भारी उन्नति , और व्यापकता के कारन मैं हार जाता हूँ। और इस तरह टूट जातं हूँ की मन की बात मन में दबाकर इस अँधेरी ज़िन्दगी में एक और अनचाहा कदम बढ़ता हूँ।

अब ये साल ख़त्म होने को है । परन्तु बीते कुछ सालों को देखता हूँ तो फिरसे एक नए साल में प्रवेश करने से डरता हूँ। फिर वही दोहराने से सकुचाता हूँ , फिर एक साल बाद इसी छ्र्ण को झेलने से घबराता हूँ।

फिर मैं जब कभी भगवन की संरचना को समझने की एक छोटी से भूल करता हूँ एक भोले - भाले गरीब इंसान और उस्सी के मत से बने एक राजनेता को देखता हूँ । एक गरीब मजदूर और उसके कार्यो से बना एक जमींदार को देखता हूँ । गाँव में बाढ़ का कहर और उधोगपतियों के घरों के छत्तों पर स्विमिंग-पूल को देखता हूँ। तो दिल भगवान् के न्याय पे सवाल करता है ? और दुसरे ही पल जब इन सरे रंगमंच के किरदारों को समसान में लकड़ी पर नंगे जलते देखता हूँ तो दिल "हे राम .... हे राम " निकल कर प्रभु को धन्यवाद् देता हूँ ।

- समय समाप्त , अब घर जा रहा हूँ।

Sunday, July 25, 2010

मेरे तन्हाई की कुछ पल

आज दिल बहुत उद्दास है , कुछ समझ में नहीं आ रहा है की क्या करू , क्या सही है और क्या गलत। क्या ज़िन्दगी का मतलब सिर्फ जीते रहना है ? थोडा रुक कर अगर हम ज़िन्दगी के बारे में सोचते है तो कितना अकेले हो जाते है हम।
क्या सिर्फ पैसा ही सब कुछ है अगर हां कहता हूँ तो गलत लगता है और ना कहा नहीं जाता , ना कहता हूँ तो हरा हारा हुआ महसूस होता है
एक बार तो लगता है की कही मई कुछ गलत दिशा में तो नहीं जा रहा हूँ ? जिस चीज को पाने के लिए हम दिन रात परेशां रहते है और वो मिल जाने के बाद भी क्यूँ हमें वो खुसी नहीं मिल पाती .... तो क्या हमने गलत सपना ही देखा था।
डर लगता है हमें की कही ज़िन्दगी ख़तम होने की बाद हमें ये मालूम चले की हमने अपने पुरे ज़िन्दगी ही गलत जी ली ।

हे भगवन कहतें है की तू हर जगह है , हमारे अन्दर-बहार हर जगह , तो हे प्रभु हमें मार्ग दिखाए और इस जिंदगी को सार्थक बनाने में हमारी मदद करे ....

Saturday, July 17, 2010

This is my First posting at my Blog, before creating the blog i had lot of ideas, certainly when its time to post then all vanishes.
Lets start with the Title "a common MAN's view abut anything". I am a common man, really i am a very common but with this common MAN's feature i want to express few things that i feel every people feels.

I am not any poet or writer i am not good in literature too. but like a common man i also had always desire of some special feature through which i can distinguish my self from the others and i can say i am little different , i have quality.

But after all my hidden efforts to do this , ultimately i am what i was ....... a common MAN with no Special Features. With all these i felt that, we born to be a Common Man only, a middle class, an average student, a good (not excellent) resource to an Organization.



In a road race , horse race or any kind of Race, only 1 winner but rest all are common and they take part in race to help the Winner win the Race, by accepting defeat.


In Nature the rule is that who ever has strength they are the winner they have the power.... We(The common Man ) have the heighest frequecy but still we are looser and follow the Winners way, here also we Defeated......



We are here to Hug the unwanted defeat so that winners can WIN......